गन्ने की खेती कैसे करें | Ganne Ki Kheti Kaise Kare 2024 | Sugarcane Farming in Hindi
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गन्ना की खेती Sugarcane Farming प्राचीन काल से ही भारत की एक मुख्य फसल रही है तथा चीनी का एक प्रमुख स्रोत भी रही है | भारत में इसका उपयोग शक्कर बनाने के लिए 35-55% तक और गुड़ बनाने के लिए 42% और खाण्डसारी के लिए 3.75% चूसने और बीज के लिए 18.75% तक उपयोग किया जाता हैं |
इसके अलावा शराब तैयार करने वाले कारखाने में भी गन्ने पर निर्भर करते हैं क्योंकि शराब बनाने में प्रयुक्त होने वाला शीरा गन्ने से ही प्राप्त होता है गन्ने की खोई से भी बहुत सी वस्तुएं जैसे-कार्ड बोर्ड कागज आदि बनाए जाते हैं |
इसके अलावा हरा अगोला पशुओं के चारे में उपयोग किया जाता है जोकि बहुत ही उपयोगी है और सूखी पत्तियां व खोई को कंपोस्ट खाद बनाने में भी काम में लाया जाता है | परंतु आज के इस ब्लॉग में हम बताने वाले हैं कि Ganne Ki Kheti Kaise Kare 2024 में की गन्ने की खेती से अच्छी पैदावार ले सकें |
वानस्पतिक नाम ( Botanical Name)
सैकरम ओफीसीनेरम ( Sacchanum Officinanum L.)
कुल (Family)-ग्रेमिनी (Gramineae)
उत्पत्ति ( Origin)
भारत में गन्ने की खेती Ganne Ki Kheti बहुत लंबे समय से होती चली जा रही है इसलिए गन्ने की उत्पत्ति भारत में बतलाई जाती है |
जलवायु ( Climate )
गन्ना उष्णकटिबंधीय देशों का पौधा है तथा इसी प्रकार की जलवायु में इसको अच्छी प्रकार उगाया जा सकता है | अच्छी बढ़वार के लिए अधिकतम तापमान साधारण आद्रता चमकीली धूप तथा बढ़वार की लंबी अवधि आवश्यक है गन्ना आमतौर पर 32 से 37 डिग्री सेल्सियस तापक्रम के बीच अच्छा पनपता है |
भूमि ( Soil )
गन्ने की खेती बालू दोमट मिट्टी से लेकर दोमट मिट्टी और भारी मृदा में भी की जाती हैं | और गन्ना की खेती Sugarcane farming के लिए उचित जल निकास वाली भूमि का होना अति आवश्यक है और जिस का पी एच मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए |
भूमि की तैयारी ( Land Preparation )
मृदा में वायु संचार बढ़ाने,अन्त:स्रवण जल की गति बढ़ाने व जीवांश-पदार्थ को निचली सतहों में पहुंचने के उद्गदेश्य से भूमि की तैयार की की जाती है और गन्ने की बुवाई के लिए खेत तैयार करते समय 2 जुताई कल्टीवेटर से एक जताई हैरों से करके खेत की मिट्टी को भुरभुर बना देना चाहिए |
गन्ने की बुवाई का समय ( Sowing time of sugarcane Farming )
गन्ने की फसल की बुवाई हमारे देश में तीन समय की जाती हैं |
1-शरद कालीन बुवाई (Autumn Planting ) - अक्टूबर-नवंबर के महीने में इस फसल की बुवाई करते हैं |
2-बसंतकालीन बुवाई ( Spring Planting ) - बसंत कालीन गन्ने की बुवाई फरवरी-मार्च के महीने में करते हैं | और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना गेहूं काटने के बाद अप्रैल-मई तक बोते हैं |
3-बर्षाकालीन बुवाई (Adasali Planting ) - वर्षा कालीन गन्ने की बुवाई जून-जुलाई में हम करते हैं |
बीज व बीज की तैयारी ( Seed and Seed Preparation )
गन्ने की फसल उगाने के लिए तने को प्रयोग में लाया जाता है तने के टुकड़े काटकर बुवाई के काम में लाए जाते हैं तने को टुकड़ों में काटने से पहले उसके ऊपर की पत्तियां सावधानीपूरक हाथ से हटा देते हैं |
जिससे कि तने की गांठों पर पाई जाने वाली कलियां को किसी भी प्रकार की हानि ना पहुंचने पाए | दांते रहित तेज हंसिया या तेज चाकू की सहायता से गन्ने के तनों को इस तरह से काटा जाता है कि प्रत्येक टुकड़े में तीन कलियां या आंखें आ जाए |
टुकड़े करने वाले चाकू या हंसिया को कीटाणु रहित करने के लिए इसे बीच-बीच में पोटेशियम परमैंगनेट के घोल में डुबाते रहते हैं बीज शुद्ध एवं स्वीकृत जाति का हो स्वस्थ एवं निरोग हो गन्ने का उपरी 1/3 भाग बुवाई के लिए प्रयोग करें और जिस फसल से बीज लिया गया हो उसमें खाद व पानी प्रचुर मात्रा में दिया गया हो |
गन्ने की उन्नत किस्में ( Improved Varieties of Sugarcane Farming )
उत्तर प्रदेश पश्चिमी एवं मध्य क्षेत्र-
अगेती जातियां -CoS 510 , CoS 1336 ,CoJ 64, CoS 8436, Co 89029, Co 85012, CoS 810 , CoS 90265 , Bo 47 , CoS 8436 , CoS 90265, 95432 आदि |
मध्यम व पछेती जातियां-Co Pant 84211, CoLK 8102, CoLK 8504, CoS 8432, CoS 918 ,CoS 802, CoS 767 ,CoS 8118, CoS 7918, Bo 91 , CoLK 91237 , CoLK 8504 ,CoLK 8504 आदि |
पूर्वी क्षेत्र के लिए - अगेती जातियां -CoS 416, Co 395, Bo 47, CoS 8436 ,CoS 95255, 95436, 95432 आदि
पछेती जातियां - CoLK 8102, CoLK 8501, CoLK 8504 , CoS 8432, CoS 918, CoLK 91239, CoLK 91236, CoLK 91238 ,CoS 86218 ,CoS 8351 आदि |
पंजाब व हरियाणा - अगेती जातियां
CoL 29 ,CoJ 58, Co 6914 ,Co 89029 , Co 7717, Co 89029 आदि
पछेती जातियां -COLK 8102 ,CoLK 8501, CoLK 8504 , CoLK 91236 , CoS 918 , CoLK 91238, CoLK 91237, CoLK 91239 आदि |
सूखा वाले क्षेत्रों के लिए जातियां
CoS 510, Co 449, Co 858, CoLK 8001, Co 421 , Co 997 आदि किस्में |
बीज के टुकड़ों का उपचार (Treatment of Setts )
बीच के टुकड़ों का अंकुरण बढ़ाने शीघ्र वृद्धि के लिए फफूंदी व अन्य जीवाणुओं के आक्रमण से बचाने के लिए विभिन्न रासायनिक दवा से टुकड़ों को उपचारित करना चाहिए |
(1) एगालाल (0.5%) व ऐरटान ( 0.25%) घोल में फफूंदी जनित बीमारियों से बचाने के लिए टुकड़ों को उपचारित करना चाहिए |
(2) बीजू टुकड़ों को विषाणुओं से मुक्त करने के लिए गर्म पानी में उपचार करना भी लाभदायक है इसके लिए टुकड़ों को 50 सेंटीग्रेड तापमान वाले पानी में 30 मिनट तक डुबाते है | तापमान का उपचार शीघ्र अंकुरण में भी काफी सहायक होता है |
(3) चूने के संतृप्त गोल में टुकड़ों को उपचरित करने पर, अंकुरण पर अच्छा प्रभाव पड़ता है |
(4) मृदा में दीमक आदि से बचाने के लिए बी. एच. सी. के घोल से या चारकोल के घोल से (4-5 लीटर पानी में 4-5 बूंद चारकोल ) उपचारित कर के टुकड़ों की बुवाई करते हैं |
(5) टुकड़ों को बुवाई से पहले चार-पांच घंटे तक पानी में डूबाए रखने पर कलियों का अंकुरण अच्छा होता है |
बीज के लिए प्रयोग किया जाने वाले गन्ने का भाग ( Porotion of Cane to be Used for Seed )
गन्ने का पूरा का पूरा तना कभी भी बोने के काम में नहीं लेना चाहिए | सदैव तने के टुकड़े करके ही बोना चाहिए | क्योंकि गन्ने में शीर्ष सुषुप्ता (Apical Dominance ) पाई जाती हैं |
अगर गन्ने का पूरा का पूरा तना बो दिया जाए तो उसका ऊपरी भाग ही अंकुरण हो पाएगा और निचली जड़ की ओर का भाग अंकुरित नहीं होगा गन्ने के तने में कुछ ऐसे हारमोंस होते हैं जो पौधे में ऊपर से नीचे की ओर चलते हैं | इन हारमोंस का प्रभाव नीचे की आंख या कलिकाओं (Buds or Eyes) पर प्रतिकूल पड़ता है |
आंखें वृद्धि करने के लिए क्रियाशील नहीं हो पाती | गन्ने में तने को टुकड़ों में काटने का उद्देश्य यही है कि इन हारमोंस का एक जगह से दूसरी जगह जाना रुक जाता है तथा प्रत्येक कलिका अपना कार्य ठीक प्रकार से कर सकती है |
अतः गन्ने को सदैव काटकर बोते हैं | गन्ने के बोये जाने वाले टुकड़ों में , प्रयोगों के परिणामों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि दो तीन चार या पांच आंख वाले टुकड़ों की अपेक्षा सदैव तीन आंख वाला टुकड़ा बुवाई के लिए सबसे अच्छा होता है |
अक्टूबर में बुवाई के लिए पूरा गन्ना बीज में प्रयोग कर सकते हैं बीज रोग रहित और कीट पतंगों रहित गन्ने का बीज का ही बुवाई में प्रयोग करें |
बीज की मात्रा ( Amount of Seed )
बीज की मात्रा गन्ने की जाति के ऊपर निर्भर करती है क्योंकि मोटे करने की जातियों का बीज अधिक और पतले गन्ने की जातियों का बीज कम मात्रा में लगता है | बोने के समय का प्रभाव भी गन्ने की बीज की मात्रा पर निर्भर करता है |
शरद ऋतु (अक्टूबर-नवंबर) में बोए गए गन्ने में अंकुरण अच्छा होता हैं व वसंत ऋतु (फरवरी अप्रैल) में बोये गए गन्ने में अंकुरण अपेक्षाकृत कम होता है अतः शरद ऋतु में बोए गए गन्ने की बीज की दर कम हो जाती है |
प्रति हेक्टेयर के लिए बीमारी रहित तीन कलिका वाले टुकड़ों की 35000 से लेकर 40000 तक संख्या पर्याप्त होती है | प्रति हेक्टेयर के लिए बीज का भार लगभग 50 से 60 कुंतल प्रति हेक्टेयर पर्याप्त बुवाई के लिए हो जाता है |
अगर गन्ने के ऊपर के भाग के टुकड़ों को ही बोलने के काम में लिया गया है तो केवल 20 से 30 कुंतल गन्ने के टुकड़े प्रति हेक्टेयर प्राप्त होते हैं |
अन्तरण ( Spacing )
मशीनों से खेती करने वाले क्षेत्रों में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 75 सेंटीमीटर रखना लाभदायक पाया जाता है नालियों में गन्ने की बुवाई करने वाले की विधि में पंक्तियों का अंतराल 85 से 90 सेंटीमीटर रखते हैं परीक्षणों के आधार से पाया गया है कि अधिक उपजाऊ मृदाओं में अन्तरण अधिक वह कमजोर मृदाओं में पंक्तियों का अंतरण कम ( 75 सेमी.) रखना उपयुक्त है |
बुवाई की विधियां ( Sowing Methods of Sugarcane Farming )
देश के विभिन्न क्षेत्रों में गन्ने की बुवाई की विभिन्न विधियों का प्रयोग किया जाता है | बोने की विभिन्न विधियों निम्न हैं -
1-समतल बुवाई ( Flat Planting ) -
समतल खेतों में बुवाई हल के पीछे पंक्तियों में करते हैं इच्छित दूरी पर देशी हल अथवा डबल मोल्ड बोर्ड हल्के हल द्वारा कुंड (furrow) तैयार कर लिए जाते हैं |
आजकल प्लांटर व ट्रैक्टर से खींचे जाने वाले डबल मोल्ड बोर्ड टाइप हल गन्ने की बुवाई के लिए उन्नतशील कृषकों द्वारा प्रयोग किए जाने लगे हैं | इन हलों की सहायता से एक बार में ही बुवाई के तीन कूंड़ तैयार हो जाते हैं | कूड़ों में गन्ने के टुकड़ों की बुवाई करके पाटा लगाकर ढ़क देते हैं टुकड़ों की गहराई 15 से 20 सेंटीमीटर रखते हैं |
2-नालियों में बुवाई ( Trenech Planting ) -
इस विधि में गन्ने की बुवाई नालियों में करते हैं | नालियां 75 से 90 सेंटीमीटर दूरी पर बनाते हैं इन नालियों की चौड़ाई 40 सेंटीमीटर व गहराई 25 सेंटीमीटर रखते हैं खेत की तैयारी के समय जैविक खाद भी खेत में मिला देते हैं खाद मिलने के बाद खेत में नालियां तैयार करते हैं |
3-समतल बुवाई करके मिट्टी चढ़ाना (Flat Planting Followed by Earthing ) -
इस विधि में गन्ने की बुवाई समतल खेत में करके वर्षा ऋतु में पौधों पर मिट्टी चढ़ाते हैं |
4-गड्ढों में बुवाई ( Planting in Pits )-
दक्षिणी भारत की काली मिट्टी में गन्ने बोने की यह विधि अपनाई जाती है काली मृदा भारी होने के कारण इसमें जल निकास की अच्छी सुविधा नहीं होती है और मृदा में वायु संचार भी उचित नहीं होता है |
अतः वायु संचार बढ़ाने के लिए खेत में उपयुक्त अंतरण पर 15 से 20 सेंटीमीटर गहरे व 75 सेंटीमीटर व्यास के गड्ढे तैयार करते हैं इन गड्ढों में अच्छा सड़ा हुआ गोबर खाद या कंपोस्ट और उर्वरक मिलाकर भली प्रकार गुड़ाई कर देते हैं | इस प्रकार के तैयार गड्ढों में पांच गन्ने के टुकड़ों की बुवाई करते हैं |
बोने की गहराई ( Sowing Depth )
बोने की गहराई, मृदा नमी ,बोने के समय तथा मृदा तापमान पर निर्भर करती है मृदा नमी उपलब्ध होने पर उथली बुवाई, शरद ऋतु में उथली बुवाई, वसंत ऋतु में गहरी बुवाई, मृदा तापमान अधिक होने पर गहरी बुवाई करते हैं साधारण तौर पर टुकड़े (Setts ) की कलिका (eye) के ऊपर 2.5 सेंटीमीटर मृदा होना आवश्यक है |
गन्ना में खाद की मात्रा ( Amount of Manure in Sugarcane Farming)
उत्तर प्रदेश में गन्ने की अच्छी पैदावार लेने के लिए 150 किलोग्राम नाइट्रोजन व आवश्यकतानुसार 80 से 100 किलोग्राम फास्फोरस 60 से 80 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर देना लाभदायक है नाइट्रोजन की अधिक मात्रा देने पर गन्ने की फसल खेत में गिर जाती है और पैदावार भी अच्छी प्राप्त नहीं होती है |
गन्ने में खाद देने की विधि ( Method of Fertilization in Sugarcane Farming )
हरी खाद की फसल गन्ना बोने के 1 माह पहले खेत में पलट दी जाती है हरी खाद अगर नहीं दी हो तो गोबर की खाद फसल बोने से एक महीना पहले ही खेत में बिखेर कर अच्छी प्रकार जुताई करके डाल देते हैं नत्रजन के उर्वरकों को ऊपर सतह पर भी डालते हैं नत्रजन के घोल को खड़ी फसल पर ही छिड़का जा सकता है |
गन्ने में खाद देने का समय ( Fertilization Time for Sugarcane Farming ) -
कार्बनिक खाद बुवाई के एक महीना पहले खेत में देते हैं अगर कार्बनिक खाद उपलब्ध नहीं है तो नत्रजन के उर्वरकों की 1/3 भाग बुवाई के समय, 1/3 भाग कल्ले फुटते ( tillering stage ) समय एवं 1/3 भाग वृद्धि के समय ( Growth period ) खेत में दे देते हैं गन्ने की फसल पूरे वर्ष ही खेत में पोषक तत्वों को ग्रहण करती है फसल पकने पर भी पौधे कुछ ना कुछ मात्रा में पोषक तत्वों का चूषण करते रहते हैं |
गन्ने में सिंचाई ( irrigation in sugarcane )
गन्ने में गर्मी में सिंचाई 10 से 15 दिन के अंतराल पर करते हैं और वर्षा ऋतु में गन्ने की सिंचाई आवश्यकतानुसार करते हैं व शरद ऋतु में 25 से 30 दिन के अंतराल में सिंचाई करते हैं ग्रीष्मकालीन सिंचाईयों की संख्या 4 से 10 तक और शरदकालीन सिंचाईयों की संख्या 2 से 4 तक परिस्थितियों के अनुसार करते हैं मृदा में उपलब्ध नमी 50% तक पहुंचते ही सिंचाई कर देनी चाहिए इससे कम नमी मृदा में रखने से उपज में गिरावट आना प्रारंभ हो जाती है |
निकाई-गुड़ाई
अंकुरण बढ़ाने व खरपतवार नियंत्रण करने के लिए कभी-कभी अंकुरण से पहले ही खेत की निराई-गड़ाई करनी पड़ती है इस प्रकार की गड़ाई को अंधी गुड़ाई (Blind Hoeing) कहते हैं | खरपतवार नियंत्रण व मृदा में वायु संचार बढ़ाने के लिए निराई गुड़ाई आवश्यक है वर्षा प्रारंभ होने तक निराई गुड़ाई की क्रिया पांच से छह बार खेत में की जाती है बैलों द्वारा चलने वाले कल्टीवेटर या फावड़ों द्वारा यह क्रिया संपन्न की जाती है जहां पर खेती का आकार बड़ा है वहां खेती मशीन से करते हैं तो निराई गुड़ाई का कार्य ही मशीनों द्वारा ही पूरा किया जाता है |
खरपतवारों का नियंत्रण(Weed Control of Sugarcane Farming)
शरद ऋतु में बोये गए गन्ने की फसल में चौड़ी पत्ती के खरपतवारों को खत्म करने के लिए 2,4-D नामक रसायन की 1 से 1.5 किलोग्राम मात्रा शरद ऋतु में बोई गई फसल में एट्राजिन नामक रसायन, बोने के 5 से 10 दिन बाद , 2-3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बोने के बाद व अंकुरण से पहले छिड़क देना चाहिए |
इन रसायनों का 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़का जाता है | 2,4-D चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारओं को व एट्राजीन घास कुल के खरपतवारों को नियंत्रित करती है |और खड़ी फसल में उगे हुए खरपतवारों को नियंत्रण करने के लिए सैंकार ( मेट्रीब्युजीन 70 WP ) 1kg प्रति हेक्टेयर 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर सकते हैं |
कीट ( Insect ) -
1 - दीमक ( Termite ) - यह जमीन में रहती है तथा क्रीमी रंग की वह मुलायम शरीर वाली होती है ये बोये गए गन्ने के टुकड़ों को हानि पहुंचाती है | एक किलोग्राम गामा बी.एच.सी. या 20-25 किलोग्राम 5% क्लोरोडेन धूल प्रति हेक्टेयर की दर से बोते समय डालनी चाहिए |
2 - जड़ बेधक ( Root Borer ) - इसका प्यूपा सफेद रंग का तथा बिना धारी वाला होता है यह जमीन में धसे हुए तने को छेदकर उस में घुसता है प्रभावित गन्ना की बीच की पत्तियां सूख जाती हैं | गामा बी.एच.सी.का शुद्ध चूर्ण एक किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 168 लीटर पानी में घोल बनाकर, गन्ने के टुकड़ों पर छिड़कना चाहिए या 8 किलोग्राम प्रति एकड़ फटेरा का प्रयोग कर सकते हैं |
3 - तना बेधक ( Shoot Borer ) - इसको गन्ने की सूंड़ी भी कहते हैं | ये सूंड़ियां 2.5-3.0 सेमी. लम्बी होती है व गर्मियों में आक्रमण करती हैं और सूखी गोफ बनाती हैं | इसका नियंत्रण भी वही है जो जड़ बेधक का हैं 5% क्लोरोडेन की 30 किलोग्राम धूल प्रति हेक्टेयर बुरकना लाभदायक है |
4- शीर्ष बेधक ( Top Borer) - इसका प्यूपा क्रीमी सफेद रंग का होता है तथा मौथ या पतंगा चमकीले सफेद रंग का होता है इसके शरीर के ऊपर धारियां नहीं होती हैं तथा शरीर के दोनों सिरे नुकीले होते हैं |
इसकी सूड़ियां जुलाई से अक्टूबर तक पत्तियों के बीच नसों में सुराख करती हैं तथा फिर नीचे की ओर बढ़ती हैं सभी प्रकार के बेधकों (Borers ) के लिये 1.5 लीटर इन्डोसल्फान (35 ई.सी.) का या नुवाकरोन (40 ई. सी.) 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़कना चाहिए या 30 किलोग्राम फ्यूराडान 3% दवा , जून के अंतिम सप्ताह में वर्षा प्रारंभ होते ही निराई-गुड़ाई कर मिट्टी में मिलाएं |
पाईरिला मक्खी ( Pyrilla or Leaf Hopper ) - इसके मौथ भूरे रंग के एवं निम्फ या अर्भक ( Nymphs ) क्रीमी सफेद रंग के होते हैं | यह गन्ने की पत्तियों से रस चूसते हैं तथा पत्तियों पर एक मीठा पदार्थ छोड़ जाते हैं जिससे फफूंदी लग जाती है | इसकी रोकथाम के लिए 1.25 थायोडान ( इण्डोसल्फान ) 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए या मैलाथियान ई.सी. 1.25 लीटर 1000 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करना चाहिए |
रोग ( Diseases ) -
1-लाल सड़न ( Red Rot ) - गन्ने का प्रमुख रोग लाल सड़न रोग कोलीटोट्राईकम फैल्केटम नामक फफूंदी से फैलता है |
पहले गन्ने के पौधों की ऊपर से तीसरी या चौथी पत्ती सूखने लगती है | इसके बाद गन्ने के पौधों का ऊपरी हरा भाग सूखने लगता है | गन्ने का बीच का भाग लाल होने लगता हैं तथा गन्ने पर लंबी सफेद धारियां पड़ने लगती हैं | गन्ने को सूंघकर देखने पर शराब जैसी दुर्गंध आने लगती है |
यह रोग मुख्य रूप से टुकड़ों द्वारा फैलता है इसकी रोकथाम के लिए टुकड़ों को किसी भी फफूंदी नाशक से उपचारित करना चाहिए | कार्बोन्डाजिम 12% + मैंन्कोजेब 64% WP- 500gm/एकड़ के हिसाब से या थायोफिनेट मिथाइल 50%WP-500gm/एकड़ के हिसाब से 15-20 लीटर पानी में घोल बनाकर 5-6 मिनट तक डूबाकर रखना चाहिए |
2-कंडुवा रोग ( Smut ) - यह दैहिक रोग है और पौरियों द्वारा फैलता है यह लगभग सभी गन्ना उत्पादक क्षेत्र में लगता है लेकिन दक्षिण में इसका प्रकोप अधिक है इसकी रोकथाम के लिए रोग रहित किस्में जैसे को.449,को.527 और को. 6806 उगानी चाहिए | रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए | रोगी फसल की पेडी नहीं लेनी चाहिए |
कटाई (Harvesting )
सामान्य अवस्थाओं में उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल 10 से 12 महीने में पक कर तैयार हो जाती है दक्षिण भारत में गन्ने की फसल 18 से 24 महीने में पककर तैयार हो जाती है |
उपज (Yield)-
देश में गन्ने की उपज विभिन्न भागों में मृदा और जलवायु की अवस्थाओं के अनुसार भिन्न-भिन्न पाई जाती है उत्तर प्रदेश में गन्ने की औसत उपज 245 कुंटल प्रति हेक्टेयर है |
FAQ
Q.1 - गन्ने का खेती कैसे किया जाता हैं ?
Ans - गन्ने के खेत की तैयारी के समय 2 बार कल्टीवेटर से व एक बार हैरो से खेत की जुताई करना चाहिए | अगर खेत का समतलीकरण नहीं हो तो पहले खेत का समतलीकरण करा लें उसके बाद गोबर खाद या कंपोस्ट खाद अवश्य डालें|
Q.2. 1 एकड़ में कितना गन्ना पैदा होता है ?
Ans.- उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल से 1 एकड़ से उपज 245 कुंटल लगभग प्रति हेक्टेयर होती हैं |
Q.3.-गन्ने की खेती कब और कैसे की जाती हैं ?
Ans.- गन्ने की खेती शरदकालीन अक्टूबर - नवंबर में और बसंतकालीन फरवरी - मार्च में और ग्रीष्मकालीन जून-जुलाई में की जाती हैं | गन्ना बुवाई से पहले अच्छी तरह से खेत की मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए तभी ही सदैव गन्ने की बुवाई करना चाहिए |
Q.4.-गन्ने का उगाने का समय कितना है ?
Ans.- गन्ने की फसल 10-12 महीने में पककर तैयार हो जाती हैं |
निष्कर्ष (Conclusion)
तो किसान भाइयों इस आर्टिकल में आपने जाना कि गन्ने की खेती कैसे करें के बारे में अगर यह आर्टिकल अच्छा लगा हो तो और किसानों को भी शेयर करें और अधिक जानकारी के लिए कमेंट अवश्य करें |
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