मेंथा की खेती कैसे करें | Mentha Ki Kheti Kaise Karen in Hindi
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मैंथा की खेती एक औषधियां फसल हैं | इसके तेल का उपयोग दवाओं में,टूथपेस्ट में,सौंदर्य उत्पादों और कंफेक्शनरी उत्पादों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है | हमारा देश मैंथा के तेल उत्पादन में दुनिया में पहले स्थान पर आता हैं |
हमारे देश में उत्तर प्रदेश,पंजाब,हरियाणा,बिहार के तराई इलाके और मध्य प्रदेश के कुछ क्षेत्रों पर आदि राज्यों में Mentha Ki Kheti बड़े पैमाने पर की जाती हैं | लेकिन उत्तर प्रदेश में इन सभी राज्यों से अधिक मैंथा की खेती की जाती हैं | लगभग 80% देश की मैंथा की खेती उत्तर प्रदेश में की जाती है |
उत्तर प्रदेश में मैथा की खेती रामपुर बदायूं सम्भल बरेली मुरादाबाद पीलीभीत फैजाबाद और बाराबंकी आदि जिलों में बड़े पैमाने पर की जाती हैं | इन जिलों के किसानों की मेंथा की खेती एक जायद की प्रमुख फसल बन गयी हैं | क्योंकि मैंथा की खेती से गर्मी में बोई जाने वाली अन्य फसलों से दोगुनी आय होती हैं | इसके अलावा आवारा जानवरों से भी नुकसान नहीं होता हैं |
क्योंकि ज्यादातर जानवरों को मैंथा(पोदिना) का स्वाद नहीं भाता हैं | इस लिए आवारा जानवरों भी मैथा की फसल को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं | जो कि आजकल आवारा जानवर एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं |
जलवायु (climate)
मेंथा की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु अच्छी होती हैं | वैसे हम मेंथा की खेती उष्ण एवं उपोष्ण जलवायु में भी सफलतापूर्वक कर सकते हैं | मेंथा की फसल की बढ़वार के समय बारिश का होना अच्छा रहता हैं | मेंथा की खेती की अच्छी बढ़वार के लिए दिन का तापमान 30°C और रात का तापमान 20°C अच्छा रहता हैं |
भूमि (Soil)
मेंथा की खेती के लिए उचित जल निकास वाली व बलुई दोमट और मटियार दोमट मिट्टी अच्छी रहती हैं | जिसका पी.एच.मान 6 से 7 हो बहुत अच्छी रहती हैं |
खेत की तैयारी (Field Preparation)
मेंथा की खेती के लिए ऐसे खेत का चुनाव करें जिसका उचित जल निकास हो बारिश का पानी खेत में भरता नहीं हो और मेंथा की बुवाई से पहले खेत की तैयारी के समय खेत को पहले समतल करके 250-300 कुन्तल प्रति एकड़ गोबर की सड़ी हुई खाद या कम्पोस्ट खाद डालने के बाद हल्की सिंचाई करना चाहिए | उसके बाद उचित नमी पर एक जुताई हैरो से व दो जुताई कल्टीवेटर से करके खेत की मिट्टी को भुरभुरा बना देना चाहिए |
मेंथा की किस्में (Mentha Ki Variety)
1-देशी पोदीना (मेंथा स्पाइकाटा एम.एस.एस.-1)
2-जापानी पोदीना (समय से व देर से बुवाई के लिए उत्तम) कोसी
3-एम.एस.एस.-9 ( हिमालय, गोमती)
4-एम.एस.एस.-1,एच.वाई.-77
5-पिप्रेटा मेंथा -कुकरैल
पौधाशाला में मेंथा की जड़ों को लगाने का समय
मेंथा की खेती के लिए नर्सरी अगस्त माह में डालना अच्छा रहता हैं | ऐसे स्थान का चुनाव करें जहां उचित जल निकास हो और बारिश का पानी भरता नहीं हो ऊंचे स्थान पर मेंथा की नर्सरी डालना चाहिए |
मेंथा की बुवाई व रोपाई( Sowing and Transplanting of Mentha)
मेंथा की खेती के लिए जड़ बुवाई का उचित समय 15 जनवरी से 15 फरवरी तक अच्छा रहता हैं | पौधे की रोपाई मार्च से 15 अप्रैल तक कर सकते हैं | पौधे की रोपाई के लिए नर्सरी फरवरी में डाल देना चाहिए | देर से पौधे की रोपाई के लिए कोसी मेंथा की किस्म अच्छी रहती हैं |
जड़ उपचार (Root Treatment)
मेंथा की जड़ की बुवाई से पहले जड़ो को वीटाबैक्स पॉवर 2gm/kg मेंथा की जड़ के हिसाब से (धानुका) उपचारित कर लेना चाहिए | इससे मेंथा की जड़ों में गलन कम देखने को मिलेगी और जमाव भी अच्छा होगा |
मेंथा की बुवाई की विधि (Mentha Sowing Method)
मेंथा की खेती दो विधि से की जाती है पहली कुड़ो में जड़ की बुवाई खेत में करके और दूसरी पहले जड़ की खेत में नर्सरी डालकर तैयार करके पौधे की मैं खेत में रोपाई की जाती है | मेंथा की जड़ की बुवाई समय पर करने पर व रोपाई समय पर करने पर मेंथा की फसल में तेल ठीक निकलता हैं | जितनी देरी से मेंथा की बुवाई/रोपाई में तेल कम निकलता हैं |
मेंथा की जड़ की बुवाई के समय लाइन से लाइन की दूरी 1.5-2 फुट तक रखें और कुंडों में जड़ से जड़ की दूरी 5-6 सेमी. और गहराई 5-6 सेमी. रखें |
मेंथा बुवाई व रोपाई के लिए जड़ की मात्रा (Quantity of root for sowing and transplanting )
मेंथा की खेती के लिए जड़ की बुवाई को 2-3 कुन्तल प्रति एकड़ जड़ की आवश्यकता होती हैं और रोपाई के लिए एक एकड़ की नर्सरी डालने के लिए 50-60kg जड़ की आवश्यकता होती हैं|पौधे की रोपाई के लिए हमें जड़ की नर्सरी 20-25 दिन रोपाई से पहले डाल देना चाहिए |
मेंथा में उर्वरकों की मात्रा(Quantity of Fertilizer in Mentha)
मेंथा की खेती से तेल की अच्छी पैदावार लेने के लिए संतुलित मात्रा में खादों की आवश्यकता होती है तो अच्छी तेल की पैदावार मेंथ की फसल से लेने के लिए निम्नलिखित खादों को डालना चाहिए-
1-नाईट्रोजन-100kg/एकड़
2-फास्फोरस-50kg/एकड़
3-पोटाश-30kg/एकड़
4-जिप्सम-200kg/एकड़
5-गोबर की सड़ी हुई खाद-200-250 कु./एकड़ को बुवाई से एक सप्ताह पहले खेत को समतल करके डालना चाहिए और उसके बाद हल्की सिंचाई करना चाहिए और अच्छी खेत की ओंठ पर खेत की जुताई करके बाकी उपयुक्त खादों को अच्छी तरह से मिलाकर बुवाई से पहले खेत में डाल दें और उसके बाद क्यारियों वह नालियां बनाई दें|
उपयुक्त खादों में से नाइट्रोजन की आधी 75kg मात्रा बुवाई के समय और आधी 75kg मात्रा को तीन बार में टांप ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करें -
1-पहली टांप ड्रेसिंग नाइट्रोजन मेंथा की 20-25 दिन की अवस्था पर
2-दूसरी टांप ड्रेसिंग नाइट्रोजन मेंथा की कटाई से 15 दिन पहले
3-तीसरी बार नाइट्रोजन पहली कटाई के 15-20 दिन बाद प्रयोग करें |
सिंचाई (Irrigation)
मेंथा की फसल में सिंचाई 15-20 दिन के अन्तराल से करते रहना चाहिए और सिंचाईयों की संख्या व दिनों का अन्तराल आपके यहां की मिट्टी व मौसम पर भी निर्भर करता हैं |
कीट व रोग (Pest and Disease)
दीमक- यह कीट मेंथा की फसल को बहुत अधिक हानि पहुंचाता है यह कीट मेंथा के पौधों की जड़ों को काट देता हैं जिससे मेंथा के पौधे सूख जाते हैं|इसकी रोकथाम हेतु बुवाई के समय फिप्रोनिल 0.3 Gr को 7.5-10kg/एकड़ अवश्य डालें|
बालदार सूण्डी- यह सूण्ड़ियां मेंथा की पत्तियों को खाती रहती हैं जिससे मेंथा की फसल से तेल का उत्पादन बहुत कम मिलता हैं इसकी रोकथाम के लिए इमाबेक्टीन बेन्जोएट 5%SG -100gm/एकड़ के हिसाब से 150-200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे कर सकते हैं |
पत्ती लपेटक सुण्ड़ी-यह सूण्ड़ियां मेंथा की पत्तियों को लपेट कर खाती हैं इसकी भी रोकथाम हेतु इमाबेक्टीन बेन्जोएट 5%SG -100gm/एकड़ के हिसाब से 150-200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे कर सकते हैं |
जड़ गलन रोग (Root Rot)-इस रोग में मेंथा के पौधों की जड़ गल जाती हैं इस रोग की रोकथाम के लिए जड़ बुवाई के समय जड़ को शोधित अवश्य करें-विटावैक्स पॉवर 2gm/kg मेंथा की जड़ के हिसाब से प्रयोग करें |
खरपतवार नियंत्रण (Weed Control)
पेन्डामेथलिन 30%EC (Pendimethalin 30% EC ) को 1 लीटर प्रति एकड़ के हिसाब से 150-200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे कर देते हैं | तो मेंथा की फसल में खरपतवारों का जमाव ही नहीं होता हैं |
कटाई (Harvesting)
मेंथा की जड़ की बुवाई के हिमालय,कोसी,गोमती आदि किस्मों की कटाई 125-130 दिन में और पौधे की रोपाई की कटाई 105-110 दिन में कर सकते हैं और मेंथा की पिपरमेंट व स्पीरमिंट बैरायटी की कटाई 105-110 दिन में कर सकते हैं|यह ध्यान रखें की कटाई करते समय मौसम साफ होना चाहिए |
उपज (Yield)
मेंथा की हिमालय,कोसी,गोमती आदि किस्मों से तेल की पैदावार 70-75kg/एकड़ तक ले सकते हैं और मेंथा की पिपरमेंट व स्पीरमिंट बैरायटी से 40-45kg/एकड़ तक तेल की पैदावार ले सकते हैं |
FAQ
1.Q. मेंथा की फसल कितने दिन में तैयार हो जाती हैं ?
Ans.-मेंथा की फसल की जड़ बुवाई की कोसी,गोमती,हिमालय आदि किस्में 125-130 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं और रोपित पौधा 105-110 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाता हैं |
2.Q. मेंथा में कौन से खाद का प्रयोग किया जाता है ?
Ans.-मेंथा की खेती से तेल की अच्छी पैदावार लेने के लिए संतुलित मात्रा में खादों की आवश्यकता होती है तो अच्छी तेल की पैदावार मेंथ की फसल से लेने के लिए निम्नलिखित खादों को डालना चाहिए-गोबर की खाद 250-300 कुन्तल प्रति एकड़
1-नाईट्रोजन-100kg/एकड़
2-फास्फोरस-50kg/एकड़
3-पोटाश-30kg/एकड़
4-जिप्सम -200kg/एकड़
3.Q. एक वीघा में पिपरमेंट का तेल कितना निकलता हैं ?
Ans.-मेंथा की पिपरमेंट व स्पीरमिंट बैरायटी से 40-45kg/एकड़ तक तेल की पैदावार ले सकते हैं और एक वीघा से 8-10kg तेल की पैदावार ले सकते हैं |
4.Q.मेथा की सबसे अच्छी किस्म कौन सी है ?
Ans. मेंथा की सबसे अच्छी किस्म सिम कोशी हैं | इस किस्म की एक एकड़ फसल में 75-80 किलोग्राम तेल निकलता हैं | जो कि मेंथा की अन्य किस्मों से (गोल्डन, हिमालय,गोमती, कोशी) अधिक तेल का उत्पादन देती हैं|
निष्कर्ष-
तो किसान भाइयों इस लेख को आप ने पढ़कर जाना की मेंथा की खेती कैसे करें क्योंकि मेंथा की खेती अगर आप करते हैं या आप नये करने वाले हैं तो इस तरह से मेंथा की खेती कर सकते हैं अगर यह लेख अच्छा लगा हो तो कमेंट करें और लोगों भी यह लेख शेयर करें |धन्यवाद
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