कुसुम की खेती कैसे की जाती है? : आईए जानते हैं कि कुसुम की खेती कब की जाती है

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
YouTube Channel Subscribe

भारत एक विश्व में कुसुम की खेती करने में प्रमुख देश हैं | कुसुम  एक तिलहनी फसल है | इसके बीजों से तेल निकाला जाता है  | तेल का उपयोग खाने में व औषधि में प्रयोग किया जाता है | कुसुम की खेती एक रबि मौसम की फसल है |

तो किसान भाइयों आज के आर्टिकल में हम जानने वाले हैं कि कुसुम की खेती कैसे की जाती है? और कुसुम की खेती कब की जाती है के बारे मे पूरी जानकारी जानने वाले हैं |

कुसुम की खेती कैसे करें,Kusum Ki Kheti Kab Ki Jaati Hai,Other Crop,कुसुम की खेती,Kusum Ki Kheti Kaise Ki Jaati Hai,

कुसुम की खेती कैसे की जाती है? ( Kusum ki Kheti Kaise ki Jaati Hai? )

कुसुम की खेती सीमित सिंचाई की दशा में अधिक लाभदायक होती है | कुसुम की खेती मुख्यता बुंदेलखंड में की जाती है | कुसुम की खेती अन्य तिलहनी फसलों की अपेक्षा पूर्वी मैदानी क्षेत्र में कम की जाती हैं | कुसुम की खेती के लिए निम्न उन्नत विधियां अपनाने से उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि होती है |


यह भी पढ़ें - लहसुन में पीलापन कैसे दूर करें


कुसुम की खेती के लिए खेत की तैयारी  (Field Preparation for Safflower Cultivation )


कुसुम की खेती के लिए खेत की अच्छी तरह से तैयारी करके बीज की बुवाई करें | कुसुम के बीज का अच्छे से जमाव के लिए बुवाई के समय खेत में नमी होना अति आवश्यक है | उचित जल निकास वाली भूमि का चुनाव करें जिसका पी ए मान 6 से 8 के बीच में हो उसका चुनाव करना चाहिए |




कुसुम की खेती के लिए उन्नतिशील प्रजातियां ( Progressive Varieties for Safflower Cultivation )


1. कुसुम की प्रजाति के.65

कुसुम की यह अच्छी प्रजाति के. 65 है | जो 180 से 190 दिन में पककर तैयार हो जाती है | इसमें तेल की मात्रा 30 से 35 प्रतिशत होती है | और इसकी औसत उपज 14 से 15 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती हैं |

2. कुसुम की प्रजाति मालवीय 305

कुसुम की यह भी प्रजाति बहुत अच्छी है | यह प्रजाति 160 दिन में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति में तेल की मात्रा 36 प्रतिशत  होती है |

कुसुम की बुवाई के लिए बीजदर ( Seed rate for Sowing Safflower )


कुसुम की खेती की बुवाई के लिए 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है |



कुसुम की खेती कब की जाती हैं? (Kusum ki kheti kab ki Jaati hai?)



कुसुम की खेती की बुवाई का समय और विधि की बात करें तो तो बुवाई का उचित समय मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर है | इसकी बुवाई 45 सेंटीमीटर कतार की दूरी पर कूंड़ों में कर सकते हैं | कुसुम की बुवाई के 15 से 20 दिन बाद अतिरिक्त पौधे निकालकर पौधे से पौधे की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर रखना चाहिए | बीज की बुवाई तीन से चार सेंटीमीटर की गहराई पर करना चाहिए |

कुसुम की खेती की बुवाई के लिए खाद की मात्रा

कुसुम की खेती में मिट्टी के परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए |अन्यथा नत्रजन 40 किलोग्राम एवं 20 किलोग्राम फास्फोरस का उपयोग अधिक लाभकारी होता है |खाद का उपयोग चोंगा या नाई द्वारा दो से चार सेंटीमीटर की गहराई पर करना चाहिए ताकि खाद का पूरा लाभ फसल को मिल सके  |

कुसुम की खेती में निराई - गुड़ाई (Weeding in Safflower Cultivation)


कुसुम की खेती में निराई गुड़ाई बुवाई के 20 से 25 दिन बाद कर सकते हैं |


कुसुम की खेती में सिंचाई (Irrigation in Safflower Cultivation )


कुसुम की खेती प्रायः असिंचित क्षेत्रों में की जाती है | यदि सिंचाई के साधन है तो एक सिंचाई फूल आते समय करना चाहिए |

कुसुम की खेती में लगने वाले रोग व कीट

कुसुम की खड़ी फसल में कभी-कभी गेरूई रोग तथा माहू कीट का प्रकोप हो जाता है | जिससे फसल को भारी क्षति होती है तथा आवश्यकता अनुसार इसकी रोकथाम निम्नलिखित विधि से करना चाहिए|


1. गेरुई रोग की पहचान 


इस रोग में पत्तियों पर पीले तथा भूरे रंग के फफोले पड़ जाते हैं |
उपचार : इस रोग की रोकथाम के लिए जिंक मैंगनीज कार्बोमेट 2 किलोग्राम अथवा जिनेब 75 प्रतिशत 2.5 किलोग्राम को 800-1000 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से 10-14 दिन के अन्तर पर 3-4 छिड़काव करें |


2. झुलसा रोग 


इस रोग में पत्तियों तथा फलों पर गहरे कत्थई रंग के धब्बे बनते हैं | जिनमें गोल-गोल छल्ले केवल पत्तियों पर स्पष्ट दिखाई देते हैं | इसके उपचार के लिए निम्न में से किसी एक रसायन का उपयोग कर सकते हैं |


रोग की दवा प्रतिशत दवा की मात्रा
1.जिंक मैंगनीज कार्बोमेट 75 प्रतिशत 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
2.जीरम 80 प्रतिशत 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
3.जिनेब 75 प्रतिशत 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
4.जीरम 27 प्रतिशत 3.5 लीटर प्रति हेक्टेयर 


3.माहू कीट की पहचान

यह कीट काले रंग के होते हैं | जो समूह में पुष्पों और पत्तियां, कोमल शाखों पर चिपके रहते हैं तथा रस चूस कर क्षति पहुंचाते हैं |
उपचार - इस कीट की रोकथाम के लिए निम्नलिखित किसी एक रसायन का छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करें तथा आवश्यकता पड़ने पर 15 से 20 दिन के अंतराल पर पुनः छिड़काव करें |
मैंलाथियान 50 ई.सी. 2 लीटर प्रति हेक्टेयर या इन्डोसल्फान 35 ई.सी. 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए |


कुसुम की खेती की कटाई - मड़ाई 


फसल पकने पर पत्तियां पीली पड़ जाती हैं | तभी इसकी कटाई करनी चाहिए | सूखने के बाद मड़ाई करके दाना अलग कर देना चाहिए |


कुसुम की खेती से उपज (Yield)


कुसुम की खेती से औसत उपज लगभग 15-18 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक होती हैं |




निष्कर्ष (Conclusion)

तो किसान भाइयों उम्मीद करते हैं कि आप इस आर्टिकल के मध्यम से समझ गये हो की कुसुम की खेती कैसे की जाती है? और कुसुम की खेती कब की जाती है के बारे में अगर यह आर्टिकल अच्छा लगा हो तो और किसानों को शेयर करें और अधिक जानकारी हेतु कमेंट अवश्य करें |



यह भी पढ़ें :-




कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.